मरुसंस्कृति विश्वकोष

राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को समग्रतया प्रकाशित करने हेतु मरुसंस्कृति विश्वकोष परियोजना प्रारम्भ की गई है।  इस परियोजना के अन्तर्गत प्रकाश्य बृहद् ग्रंथ में मारवाड़ी समाज की संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का समावेश किया जाएगा।
 मरुसंस्कृति का स्वरूप - पुरातत्त्वज्ञों के मतानुसार जलमग्न पृथ्वी का अरावली पर्वतश्रेणी वाला भूभाग सर्वप्रथम जल से बाहर टापू के रूप में उभरा और उसका क्षेत्रफल क्रमशः बढ़ने लगा।  निर्जल  भूभाग को संस्कृत भाषा में मरुवाट कहते हैं। यहीं सर्वप्रथम सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ।  इस मरुवाट को ही कालान्तर में मारवाड़ तथा यहाँ के निवासियों को मारवाड़ी कहा जाने लगा।  विश्व के प्राचीनतम प्रागैतिहासिक पुरावशेष यहीं पाये जाते हैं।  यहीं प्राचीनतम सभ्यता व संस्कृति के केन्द्र सरस्वती काटली आदि नदियों के तटों पर पनपे, जिन्हें अब हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से पूर्ववर्ती स्वीकार कर लिया गया है।  सरस्वती के तट पर ही विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद रचा गया।  तब पूरा राजस्थान और उसके बाहर कुरुक्षेत्र और मालवा तक का भूभाग मारवाड़ की परिधि में था।  देश के अन्य प्रांतों में आज भी प्राचीन बृहत्तर मारवाड़ के निवासियों को मारवाड़ी कहा जाता है।  इस विस्तृत भाग में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक पनपी संस्कृति का नाम ही मरुसंस्कृति है।  विश्व की प्राचीनतम सांस्कृतिक विरासत का वारिस होना राजस्थान के लिए गौरव का विषय है।
मरुसंस्कृति विश्वकोष की विषयवस्तु -मरुसंस्कृति विश्वकोष के स्थानकोष नामक प्रथम अध्याय में महत्त्वपूर्ण स्थानों का विवरण होगा।  व्यक्तिकोष नामक द्वितीय अध्याय में संत, समाजसेवी, साहित्यकार, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद्, कलाकार आदि विशिष्ट व्यक्तियों का परिचय होगा।  संस्थाकोष नामक तृतीय अध्याय में समाजसेवी  संस्थाओं तथा संगठनों का परिचय होगा। भाषा-साहित्यकोष नामक चतुर्थ अध्याय में भाषाओं तथा साहित्य का, पंचम अध्याय कुलदेवीकोष में कुलदेवियों का तथा षष्ठ अध्याय प्रकीर्णकोष में आचार-विचार, धर्म-दर्शन, खान-पान आदि से सम्बन्धित विविध तत्त्वों का विवरण होगा।
शोधसामग्री का संकलन - मरुसंस्कृति विश्वकोष के लिए शोधसामग्री का संकलन राजस्थान प्रदेश के साथ-साथ राजस्थानियों के  प्रवासक्षेत्रों से भी किया जायेगा ।  व्यक्तिशः सम्पर्क, पत्राचार, शोधयात्रा व मारवाड़ी समाज की विभिन्न संस्थाओं की सहभागिता में विचारगोष्ठी, परिचर्चा आदि कार्यक्रमों का आयोजन सामग्री-संकलन के मुख्य साधन होंगे।
परियोजना की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्त्व - मरुसंस्कृति विश्वकोष से मारवाड़ी समाज की संस्कृति के बारे में शोध की प्रवृत्ति पनपेगी तथा शोध का नया क्षेत्र विकसित होगा।  मरुसंस्कृति-विषयक शोध के बारे में पूर्व उपराष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा का कथन ध्यातव्य है - ‘‘संस्कृति के विभिन्न रूप हमारी राष्ट्रीय संस्कृति की शक्तियाँ  है। ... मारवाड़ क्षेत्र की भी अपनी संस्कृति है जो हमारी राष्ट्रीय संस्कृति में एक नया रंग जोड़ती है। ... हमारे राष्ट्र में जितने भी समाज है, उनका गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए, ताकि उनकी संस्कृति की विरासत के समृद्ध तत्त्वों को आने वाली पीढ़ी के सामने रखा जा सके।’’
 इस शोधकार्य से प्रवासी मारवाड़ियों का अपनी जन्मभूमि के प्रति अनुराग भी उजागर होगा।  प्रवासी मारवाड़ी विदर्भकेसरी श्री ब्रजलाल बियाणी ने प्रवासी राजस्थानियों को अपनी जन्म भूमि से जोड़ने के लिए ‘‘राजस्थान’’ नामक अखबार निकाला था। उसके सम्पादकीय की कुछ पंक्तियाँ द्रष्टव्य हंै - ‘‘राजस्थान की भलाई के कार्य का बड़ा हिस्सा उन पर निर्भर है जो राजस्थान छोड़कर व्यापार-व्यवसाय के लिए बाहर आ बसे हैं।’’ अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन में सभापति श्री रामदेव चोखानी के उद्गार द्रष्टव्य  हंै - ‘‘ यद्यपि आज हम अपनी मातृभूमि राजस्थान से विच्छिन होकर दूर-दूर प्रांतों में जा बसे हंै,  किन्तु उसके प्रति जो हमारा कर्तव्य है  उससे उदासीन न बनिए।’’ अखिलभारतीय मारवाड़ी युवा मंच के  प्रथम अध्यक्ष प्रमोद सराफ का कथन है -‘‘ कर्मभूमि में लोकोपकारी कार्यो को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए,  परन्तु जन्मभूमि के प्रति अलगाव व्यक्तित्व के अधूरेपन एवं स्वार्थपरता का ही परिचय देगा। कृतज्ञता की भावना भी मारवाड़ियों की पहचान रही है। अतः पूर्वजों की माटी के प्रति कृतज्ञता का भाव रखना विरासत की सुरक्षा हेतु अति आवश्यक है। ’’
 मरुधरा की सांस्कृतिक विरासत के प्रति अनुराग की व्यंजक यह प्रेरक चिन्तनधारा अनुसंधान और प्रकाशन की अपेक्षा रखती है।  यह परियोजना इसी अपेक्षा की पूर्ति का उपक्रम है।
अनुरोध - कृपया अपनी जानकारी के अनुसार विश्वकोष के विभिन्न अध्यायों से सम्बन्धित सूचना उपलब्ध करावें।  परियोजना के विषय में अपने विचार, सुझाव व सम्मति से भी अवगत करावें ।  सादर
                                                                                           भवदीय
                                                                                  डाॅ. रामकुमार दाधीच
                                                                                           प्राचार्य
                                                        श्री कल्याण रा. आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, सीकर (राज.)
                                                                             
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