ये है चोरों से सावधान करने वाली "नकटी माता" Nakti Mata / Nakchi Mata Temple Jai Bhawanipura Jaipur

Nakti Mata / Nakchi Mata Jai Bhawanipura Jaipur
               जयपुर से लगभग 22 कि.मी. पश्चिम में अजमेर रोड़ पर भांकरोटा से एक सड़क उत्तर दिशा में मुकुन्दपुरा को जाती है । इस सड़क पर निमेड़ा से लगभग 1 कि.मी. पर जयभवानीपुरा गाँव है जहाँ नकटीमाता का प्राचीन मन्दिर अवस्थित है ।
Nakti Mata / Nakchi Mata Temple Jai Bhawanipura Jaipur
         देवी के इस मन्दिर में कोई शिलालेख नहीं मिला है जिससे इसके निर्माण की सही तिथि और निर्माताओं के बारे में प्रामाणिक जानकारी का आभाव है । अपने विशिष्ट स्थापत्य और शैलीगत विशेषताओं के कारण यह प्रतिहार शासकों द्वारा निर्मित जान पड़ता है । इसका निर्माण आठवीं नवीं शताब्दी ई. के लगभग हुआ जो प्रतिहार कला का उत्कर्ष काल था तथा इस समय श्रेष्ठतम प्रतिहार मूर्तियाँ बनीं । ढूंढाड़ क्षेत्र में इसके उदाहरण आभानेरी के हर्षतमाता मन्दिर तथा आम्बेर के कल्याणराय मन्दिर में प्रतिष्ठापित देव प्रतिमाओं में देखे जा सकते हैं । जयभवानीपुरा का यह मन्दिर भी उनके समकालीन प्रतीत होता है ।
Idols "Garbh-Grih" Gate in Nakti Mata / Nakchi Mata Temple
           उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि यह मूलतः दुर्गा का मन्दिर था । दुर्गा भवानी के मन्दिर के कारण ही सम्भवतः यह गाँव जयभवानीपुरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ । 
           इस मन्दिर की आराध्या देवी का नकटीमाता नामकरण के पीछे यह लोकविश्वास है कि ये देवी गाँववासियों को चोर लुटेरों की गतिविधियों से सावचेत करती थीं अतः इस देवी प्रतिमा को अपने उद्देश्यों की पूर्ति में विघ्न मानकर इन लोगों ने देवी प्रतिमा को नाक के पास से खण्डित कर दिया था तथा तत्पश्चात् वे नकटीमाता के नाम से जानी जाने लगी । 
Nakti Mata / Nakchi Mata Temple Jai Bhawanipura Jaipur
           नकटीमाता का यह मन्दिर पूर्वाभिमुख है तथा एक ऊँचे अधिष्ठान पर बना है । हालांकि यह मन्दिर आकार में विशाल नहीं है किन्तु परम्परागत भारतीय वास्तुशास्त्र के आदर्शों के अनुरूप निर्मित होने तथा प्रमुख हिन्दू देवी देवताओं की कलात्मक देव प्रतिमाएँ संजोये होने के कारण अपनी एक विशेष पहचान और महत्त्व रखता है । स्थानीय नवासियों के अनुसार वर्षों पहले इस देवी मन्दिर के सामने की ओर एक सुन्दर और विशाल बावड़ी भी थी जो कालक्रम से धूल धूसरित होकर भूमि के भीतर दब गई । 
                        मन्दिर के कर्ण प्रतिरथ और भद्रा नामक तीन अंगों पर एक-एक ताक या रथिका हैं जिनमें दिकपाल, अप्सराएं, गणेश एवं स्कन्द कार्तिकेय की सुन्दर और सजीव प्रतिमाएँ विध्यमान हैं । मन्दिर के प्रवेश द्वार के दायीं ओर इन्द्र की खड़ी हुई प्रतिमा है जिसमें इन्द्र अपने बाएं हाथ में (खण्डित) वज्र लिए हुए प्रदर्शित हैं । इसके अलावा अग्नि, वायु, यम, वरुण और कुबेर इत्यादि की सजीव और कलात्मक मूर्तियाँ मन्दिर की बाहरी ताकों में है जो उसकी शोभा को द्विगुणित करती हैं । नकटीमाता मन्दिर की उत्तर दिशा की दाहिनी ताक में विराजमान चार भुजाओं वाले गणेश की प्रतिमा बहुत आकर्षक है । इसी तरह मन्दिर की बायीं ओर की ताक में मयूर की सवारी किए कार्तिकेय की सजीव प्रतिमा है । देवी मन्दिर की पश्चिमी ताक एकदम खाली है । 
             नकटीमाता मन्दिर का मुख़ालिन्द या पोर्च दो तराशे हुए सुदृढ़ पाषाण स्तम्भों से निर्मित है जो स्वास्तिक और कीर्तिमुख इत्यादि से अलंकृत है । इसके भीतर की छत कमल पुष्पों से सज्जित है ।
              वर्तमान में मन्दिर के गर्भ गृह की पीठ पर जो प्रतिमा प्रतिष्ठापित है वह सम्भवतः देवी काली की प्रतिमा है जिनके मुख का नासिका वाला भाग खण्डित है। 
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1 comments:

  1. Nakchi Mata ki Jai... Jai Maa Nakti Devi

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मिशन कुलदेवी से जुडने के लिये आपका धन्यवाद