छोटी सादड़ी चित्तौड़गढ़ से लगभग 56 कि . मी. दक्षिण में निम्बाहेड़ा-प्रतापगढ़ मार्ग पर स्थित है । यह अजमेर-खण्डवा रेलमार्ग पर मध्यप्रदेश के नीमच रेलवे स्टेशन के पास है । इस कस्बे से लगभग 3 की. मी. दूर पर्वतमालाओं के मध्य भँवरमाता या भ्रमरमाता का प्राचीन मन्दिर है । इस मन्दिर से संवत् 547 का एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है, जिसमे असुर-संहारिणी , शूलधारिणी दुर्गा की आराधना की गई है । इस शिलालेख में पार्वती द्वारा शिव के प्रति भक्ति एवं श्रद्धा से अभिभूत होकर शिव का आधा शरीर बन जाने का उल्लेख है । पुरातत्त्ववेत्ता डॉ. आर.सी. अग्रवाल के अनुसार भ्रमरमाता (भँवरमाता) मन्दिर से मिले इस शिलालेख में देवी दुर्गा को महिसासुर राक्षस मर्दन के लिए उग्र सिंहों के रथ पर सवार होकर जाने का वर्णन है । दुर्गा का यह स्वरूप, जिसमें उसे सिंहों के रथ पर सवार होकर संहाररत मुद्रा में राक्षसों का वध करते दिखाया हो, बहुत दुर्लभ है ।
लोकमान्यता के अनुसार यशगुप्त के पुत्र राजा गौरी ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया । उन्होंने किसी प्राचीन देवालय के भग्नावशेषों पर देवी भ्रमरमाता (दुर्गा) के इस मन्दिर को बनवाया । जनश्रुति के अनुसार वर्षों पहले मन्दिर के सामने वाली वाली पहाड़ी पर राजलगढ नामक एक किला था , वहाँ के राजपरिवार की ये कुलदेवी थीं ।
एक खुले विशाल चौक के भीतर भ्रमरमाता (भँवरमाता) का यह मन्दिर है, जिसके प्रवेश द्वार पर देवी का वाहन सिंह बना है । मन्दिर के पास केवड़े की नाल है तथा शिव मन्दिर भी बना है । नैसर्गिक सौन्दर्य-युक्त यह स्थान बहुत सुरम्य और मनभावन है । नवरात्र में श्रद्धालु काफी संख्या में वहाँ आते हैं । हरियाली अमावस्या को देवी मन्दिर प्रांगण में विशाल मेला लगता है ।
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Bhanwar Mata ki Jai... Jai ho Chhoti Sadri ki Maiya
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