चमत्कारी जोगन- जोगणियामाता "Joganiya Mata"

Joganiya Mata
        चित्तौड़गढ़ से  लगभग 85 कि.मी.दूर राजस्थान और मध्यप्रेदश राज्यों की सीमा से लगते ऊपरमाल पठार के दक्षिणी छोर पर जोगणियामाता का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है । ज्ञात इतिहास के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण आठवीं शताब्दी ई. के लगभग हुआ । लोकमान्यता है कि पहले यहाँ अन्नपूर्णा देवी का मन्दिर था। मन्दिर से 1 कि.मी. पर बम्बावदागढ़ का  किला है जहाँ हाडा शासक बम्बदेव का शासन था । जनश्रुति है कि बम्बावदागढ़ के अन्तिम शासक देवा हाड़ा ने देवी अन्नपुर्णा को अपनी पुत्री के विवाह में आशीर्वाद देने हेतु आमन्त्रित किया । देवी अपने प्रति आस्था की परीक्षा लेने हेतु जोगन का रूप धारणं कर विवाह समारोह में आयी लेकिन देवी को इस रूप में कोई पहचान नहीं सका तथा फलस्वरूप उन्हें यथेष्ठ सम्मान नहीं मिला  ।
           तदनन्तर देवी एक  सुन्दर युवती का वेश धारण कर विवाह स्थल पर फिर से आयी तो सम्मरोह में आये अनेक लोग इस युवती के सौन्दर्य पर मुग्ध हो गये तथा उसे अपने साथ ले जाने हेतु आपस  में लड़ने लगे । स्वयं देवा  हाडा भी इस युद्ध में घायल हो गया ।
          तत्पश्चात् देवा हाड़ा ने अन्नपूर्णा देवी के मन्दिर में काफी अरसे तक उनकी आराधना की । इसके बाद देवी के आदेश से वह बूंदी चला गया और मेवाड़ के  महाराणा  हम्मीर  की सहायता  से सन् 1341 में बूंदी पर हाडा राजवंश का  शासन स्थापित किया । देवा हाड़ा की पुत्री के विवाह में जोगन का रूप धारण करने के बाद से ही वे अन्नपूर्णा के बजाय जोगणियामाता के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुई ।
           जोगणियामाता लोक आस्था की देवी है तथा एक चमत्कारी देवी के रूप में उनकी मान्यता है । देवी मन्दिर के प्रवेश द्वार पर दो  शेरों की सजीव आकृतियाँ बनी हैं । मन्दिर के गर्भगृह में महाकाली,महालक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित है । मन्दिर परिसर में दो शिव मन्दिर बने हैं जहाँ वर्षपर्यन्त गोमुख से रिस-रिसकर बहती जलधारा पर्वतमाला और सुरम्य वन्य प्रदेश से आवृत इस मन्दिर के नैसर्गिक सौन्दर्य में अतिशय वृद्धि कर देते हैं । जोगणियामाता परिसर की देव प्रतिमाओं में पद्मासनस्थ शिव, अष्टभुजी नटराज और स्थानक  सूर्य की प्रतिमायें बहुत सजीव और कलात्मक हैं ।
             जोगणियामाता की कृपा से मनोवांछित फल पाने हेतु श्रद्धालु बड़ी संख्या में देवी के इस मन्दिर में आते हैं । माता द्वारा पर्चा देने और चमत्कार दिखने की अनेक कथाएँ लोक मानस में प्रचलित है । मनोकामना पूरी होने पर मन्दिर परिसर  में मुर्गे छोड़कर जाने की भी प्रथा है । मेंणाल पर्यटन स्थल से मात्र 7 कि.मी. दूर होने कारण वहाँ आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक भी जोगणियामाता के दर्शनार्थ मन्दिर में आते हैं ।    

Joganiya Mata Chittorgarh  जोगणियामाता, Joganiya Mata Temple Chittorgarh Rajasthan, Annapurna Mata Temple Chittorgarh Rajasthan, Annapoorna Devi Chittorgarh Rajasthan
Share on Google Plus

About Unknown

A Blogger working to illuminate Indian heritage and culture.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

1 comments:

  1. Joganiya Mata ki Jai...Jai Maa Joganiya

    ReplyDelete

मिशन कुलदेवी से जुडने के लिये आपका धन्यवाद